- नंदी हाल से गर्भगृह तक गूंजे मंत्र—महाकाल के अभिषेक, भस्मारती और श्रृंगार के पावन क्षणों को देखने उमड़े श्रद्धालु
- महाकाल की भस्म आरती में दिखी जुबिन नौटियाल की गहन भक्ति: तड़के 4 बजे किए दर्शन, इंडिया टूर से पहले लिया आशीर्वाद
- उज्जैन SP का तड़के औचक एक्शन: नीलगंगा थाने में हड़कंप, ड्यूटी से गायब मिले 14 पुलिसकर्मी—एक दिन का वेतन काटने के आदेश
- सरदार वल्लभभाई पटेल की 150वीं जयंती पर ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ का संदेश, उज्जैन में निकला भव्य एकता मार्च
- सोयाबीन बेचकर पैसा जमा कराने आए थे… बैंक के अंदर ही हो गई लाखों की चोरी; दो महिलाओं ने शॉल की आड़ में की चोरी… मिनट भर में 1 लाख गायब!
51/84 श्री शूलेश्वर महादेव
51/84 श्री शूलेश्वर महादेव
काफी समय पहले दैत्यों और देवताओं में युद्ध हुआ। दैत्यों के स्वामी जंभ और इंद्र के बीच वर्षों तक युद्ध हुआ। जिसमें दैत्य विजयी हुए और अंधकासुर ने स्वर्ग पर शासन शुरू कर दिया। एक दिन अंधकासुर का एक दूत कैलाष पर्वत पहुँचा और भगवान शिव से कहा कि अंधकासुर ने कहा है कि तुम कैलाष छोड़ दो और पार्वती को उसके पास भेज दो। इस पर शिव ने दूत से कहा कि वह अंधकासुर से कहे कि वह यहाँ आकर युद्ध करे और शिव को हराकर पार्वती को ले जाए। यह सुनकर अंधकासुर अपनी सेना के साथ कैलाष पहुँच गया। शिव ने शूल से प्रहार कर अंधकासुर को घायल कर दिया और पाताल तक घुमाया। अंधकासुर के रक्त से उसके जैसे कई दानव उत्पन्न होने लगे। तब शिव ने अपनी शक्ति से महादुर्गा को प्रकट किया और दुर्गा ने अंधकासुर का वध किया। आखिरकार अंधकासुर ने भगवान शिव की उपासना की । भगवान शिव ने उसे महाकाल वन में पृथुकेश्वर महादेव के पूर्व में स्थित शिवलिंग की उपासना करने के लिए कहा। शूल से मृत्यु प्राप्त होने के कारण शिवलिंग का नाम शूलेश्वर विख्यात हुआ। मान्यता है कि जो भी मनुष्य शूलेश्वर के दर्शन कर पूजन करता है वह सभी प्रकार के भय और दुखों से मुक्त होता है और अंतकाल में परमपद को प्राप्त होता है।